कहानी - अन्धविश्वास के चक्कर में रोग को न नकारें




स्किजोफ्रेनिया-पेरेनोईड टाईप

                रमेश 24 साल का बी.एड का छात्र हैं। एक महीने पहले ही उसकी बहन की शादी थी जिसमें उसने रात-रात भर जाग कर शादी का पूरा काम-काज संभाला। लगभग 3 रातों तक लगातार ही वह नींद नहीं ले पाया था। शादी निपटने के कुछ 3-4 दिन बाद ही उसके पिता को रमेश का व्यवहार कुछ अलग लगने लगा। उसे नींद बहुत कम आती थी और वह थोड़ा अकेला और अलग सा रहने लगा था। पहले तो उसके पिता ने सोचा कि शादी में किए गए अत्यधिक काम-काज की वजह से शायद उसे थकान होगी, परन्तु एक बार जब रमेश ने उनके साथ गाली गलौज करी तो उन्हें थोड़ा अजीब लगा।

उन्होंने रमेश के पास जाकर उससे बात करने की कोशिश की तो शुरू के 5-6 दिन वह कुछ खास नहीं बोला लेकिन बाद में धीरे-धीरे उसने बताया कि पिछले कुछ दिनों से उसके साथ कुछ अजीब घटित हो रहा है। उसे अकेले बैठे भी कानों में कोई आवाजें आती हैं। ये आवाजे किसी आदमी की है जो उसे कहता है कि वो उसे मार देगा और अपने साथ ले जाएगा। रमेश ने बार-बार उठकर अपने आस-पास, कमरे के बाहर, घर के बाहर देखता तो उसे उस आवाज से संबंधित कभी कोई व्यक्ति नजर नहीं आता। उसे बहुत डर लगने लगा और वह घर के आस-पास से गुजरने वाले हर व्यक्ति से डर कर छुप कर रहने लग गया था। रमेश ने बताया कि जब भी कोई भी दो या अधिक व्यक्ति बात कर रहे हो तो उसे ऐसा महसूस होता है कि वो उसी के बारे में बात कर रहे हैं, उसी की तरफ देख रहे हैं या उसे नुकसान पंहुचाने की साजिश कर रहे हैं।

रमेश के पिता को लगा कि शायद रमेश पर किसी बुरी आत्मा का साया है जो उसे डरा रहा है। इसलिए वह उसे गाँव के बाहर मंदिर में रहने वाले तांत्रिक के पास ले गए। तांत्रिक ने भी किसी प्रेत आत्मा का प्रकोप बताया और यज्ञ कर आत्मा को भगाने हेतु 11000 रूपये मांगे। रमेश के पिता ने रूपये और  हवन सामग्री तांत्रिक के कहे अनुसार लाकर दी और जल्द से जल्द हवन करके आत्मा भगाने के लिए कहा। हवन के 7 दिन बाद भी रमेश की स्थिती और ज्यादा बिगड़ती जा रही थी। उसने डर के मारे अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया, कानों पर हाथ रखकर आवाजें रोकने की कोशिश करता, घर पर आए हर व्यक्ति को शक की नजरों से देखते हुए उनको भला-बुरा कहता और कई-कई बार तो उन पर हमला भी कर देता।

उसके पिता उसे अगली बार किसी भोपे के पास ले कर गए तो उसने रमेश पर किसी का जादू टोना किया हुआ बताया। हवन फिर से किया गया पर रमेश की तकलीफ रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब वह अपने घर वालों पर भी शक करने लगा और यह कहते हुए उनके हाथ से बना खाना नहीं खाता था कि उन्होने खाने में जहर मिला दिया है।

रमेश का मामा एक बार उससे मिलने आया तो वह तुरंत सारा माजरा समझ गया क्योंकि उसके पिता यानि कि रमेश के नाना जी को भी इसी तरह की बीमारी थी। मामा उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास लेकर गया जहाँ संपूर्ण जांच होने पर पाया गया कि रमेश को पेरेनोईड स्किजोफ्रेनिया नामक एक मानसिक रोग हैं। तुरंत ही उसका ईलाज शुरू किया गया और 5 दिन अस्पताल में रखने के बाद स्थिति सुधरने पर उसे अगले 15 दिन की दवा देकर घर भेज दिया गया। 15 दिन की दवा से उसे काफी आराम हुआ और उसके पिता ने मनोचिकित्सक के कहे अनुसार उसकी दवा लम्बे समय तक जारी रखी। धीरे-धीरे रमेश ठीक हो गया और अपना सामान्य जीवन जीने लगा।

दोस्तों हमारे समाज में रमेश जैसे कई व्यक्ति है जो कि इस बीमारी से पीड़ित होते हैं और अपना शुरूआती कीमती समय भूत-प्रेत का साया समझ कर गंवा देते हैं। जरूरत है तो बीमारी को जल्दी पहचान कर तुरंत इलाज करवाने की, क्योंकि जितना जल्दी इलाज शुरू होगा उतनी ही जल्दी बीमारी ठीक होगी।

धन्यवाद

आपका अपना
डॉ. अनन्त कुमार राठी
सहायक आचार्य,
मानसिक रोग विभाग,
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर

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