रमेश और शराब की लत



रमेश 40 साल का किसान था। गाॅंव में उसके पास 5 बीघा जमीन थी और उस पर एक ट्यूबवेल भी लगा हुआ था। पिछले कुछ दिनों से रमेश को अपना पेट सही नहीं लग रहा था। उसको पेट में जलन रहने लगी थी और दिनभर खट्टी डकारें आती थीं। उसे भूख न लगने की शिकायत भी थी और अगर वह कुछ खा भी लेता तो थोड़ी देर में उसे उल्टी हो जाती थी। वह पेट के डाॅक्टर को दिखाने गया तो डाॅक्टर ने उसे कुछ दवा दी लेकिन उसे दवा से कुछ खास फायदा नहीं हुआ। 

दरअसल रमेश को पिछले 10 सालों से शराब पीने की बुरी लत थी। शुरूआत में तो वह कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ शराब पीता था, किंतु धीरे-धीरे यह शौक ही उसकी जरूरत बनता गया क्यूँकि अब उसे शराब पिए बिना नींद भी नहीं आती थी। शराब पीने की लत कब शौक से जरूरत और जरूरत से मजबूरी बन गई उसे पता ही नहीं चला। अब जब भी शराब का नशा उतरता उसके शरीर में कंपन होने लगता और घबराहट के साथ-साथ पसीना भी आने लगता। अत्यधिक घबराहट को रोकने के लिए वह फिर से शराब पी लेता था और ऐसे करते -करते अब हालात यह हो गए थे कि वह सुबह उठते ही शराब का सेवन करने लगता था। धीरे-धीरे  उसने खेत पर जाना ही छोड़ दिया और पूरे दिन नशे के जुगाड़ में लगा रहता। 

एक बार किसी शादी में उसे शराब नहीं मिली तो उसे मिर्गी का दौरा भी आ गया था, फिर उठकर वह बहकी-बहकी बातें भी करने लगा। रमेश जितना भी कमाता सब नशे में उड़ा देता और अपने घर पर उसमें से कुछ भी नहीं देता था। घरवाले भी उसकी नशे की लत से परेशान हो गए थे। उसके पिता ने बहुत बार जोर जबरदस्ती उसे शराब छुड़वाने की कोशिश की, किंतु वे नाकाम रहे क्यूंकि वह दो तीन दिन से ज्यादा शराब के सेवन के बिना नहीं रह पाता था। गांव के ही सरकारी अस्पताल के चिकित्सक ने रमेश के पिता को उसे इस स्थिति से बाहर लाने के लिए मनोरोग चिकित्सक को दिखाने की सलाह दी। 

मनोरोग चिकित्सक ने समझाया कि शराब पीना सिर्फ एक बुरी आदत नहीं बल्कि एक मानसिक बीमारी है, जिसमें कि व्यक्ति को नशे के अलावा कोई चीज अच्छी नहीं लगती और नशे के बिना कई शारीरिक लक्षण जिन्हें  Withdrawal Symptoms कहते हैं, आते हैं। इन्ही लक्षणों को रोकने के लिए व्यक्ति पुनः शराब का सेवन करता है और ऐसा करते करते वो इस भँवर में इतना फंस जाता है कि बिना किसी  चिकित्सकीय मदद के वह इससे बाहर निकल नहीं पाता। 

मनोचिकित्सक ने उसके लीवर और पेट संबंधी जाँचें करवाई तब पता चला कि रमेश के लीवर में काफी सूजन आ चुकी थी। उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कर इलाज शुरू किया गया। शुरूआत में उसे इंजेक्शन (टीके) और ड्रिप लगाई गई, पर धीरे-धीरे उसे सिर्फ गोली व दवा से ही नींद आने लगी। उसको अब भूख भी लगने लगी थी और उसे खाया हुआ पचने लगा। 

मनोचिकित्सक ने बताया कि अगर कुछ दिन की देर और होती तो रमेश के पेट में पानी भर सकता था, जिससे उसकी साॅंस फूलने लगती और खून की उल्टियाॅं भी हो सकती थी। रमेश की दवा और काउन्सलिंग लगातार तीन महीने तक की गई और फिर उसकी दवा भी बंद हो गई। उसका और उसके पूरे परिवार का जीवन खुशियों से भर गया। आज रमेश व्यसनमुक्त एवं बीमारी रहित प्रसन्न जीवन व्यतीत कर रहा है।

दोस्तों हमारे समाज में रमेश जैसे कई व्यक्ति है जो शराब रूपी दलदल में इस कदर फंसे हैं कि जितना निकलने की कोशिश करते हैं उतना ही और अधिक फंसते जाते हैं। इन्हें जरूरत है एक मदद की, वह मदद जो इन्हें मनोचिकित्सक तक ले जा सके और ऐसी मदद आप भी किसी अपने की कर सकते हैं।

सधन्यवाद
आपका
डाॅ. अनंत कुमार राठी
एम. डी. (मनोचिकित्सक)
नशामुक्ति विशेषज्ञ
बीकानेर
मो. 7597741210

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