कहानी - गोलियों की गिरफ्त में





देवराज  23 वर्ष का नवयुवक था जो कि ईंट भट्टे पर मजदूरी से अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसके पिता को 2 वर्ष पहले लकवा हो गया था जिस वजह से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था। छोटी उम्र में ही उसे कमाई हेतु काम पर जाना पड़ा था। काम का अत्यधिक बोझ होने के कारण वह थक कर चूर हो जाता।

एक दिन उसी जगह काम करने वाले अन्य मजदूर ने उसे थकान और शरीर दर्द मिटाने के लिए एक गोली दी। उसके आधे घंटे बाद ही देवराज के शरीर में जैसे नई ऊर्जा आ गई। वह पहले से और ज्यादा काम कर पा रहा था और उसे आज मजदूरी भी ज्यादा मिली। ज्यादा मजदूरी के लालच में वह रोजाना एक गोली का सेवन करने लगा। उसे वह गोली पास के बस स्टैण्ड पर एक मेडिकल स्टोर से ही मिल जाती पर वह भी दुगने दाम पर।

धीरे-धीरे उसने गोली का सेवन रोजाना एक से दो कर दिया और कब दो से चार और चार से सोलह हुई उसे पता ही नहीं चला। पहले तो गोली उसकी जरूरत थी पर धीरे-धीरे वह उसकी मजबूरी बन गई। एक दिन उस मेडिकल स्टोर पर पुलिस का छापा पड़ा और वह दुकान बंद हो गई। अब देवराज के लिए मुसीबत खड़ी हो गई क्यूंकि वह दवा कोई और दुकानदार उसे नहीं दे रहा था। कुछ ही देर में उसके पूरे बदन में दर्द होने लगा, बैचेनी हो गई, आँख और नाक से पानी आने लगा और दस्त लगने शुरू हो गए। उसे बिल्कुल नींद नहीं आ रही थी। वह तुरंत उठकर पड़ौसी गाँव में गया और वहाँ के मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक और नींद की गोलियां ले आया। कुछ दिन तो उसका काम चलता रहा पर एक माह बाद जब वह दवा ला नहीं पाया तो उसे मिर्गी का दौरा पड़ा और वह बेहोश हो गया।

उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसने बताया कि वह दिन भर में 10-15 नींद की गोली खा लेता है। उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास नशा मुक्ति के लिए भेज दिया गया जहाँ उसके स्वास्थ्य की पूरी जांच की गई। उसके दिमाग में कोई खराबी नहीं आई अपितु मिर्गी के दौरे का कारण नशे की गोलियों को माना गया। उसका ईलाज शुरू करने के बाद उसे आराम होने लगा। उसे एहसास  हुआ कि पैसों के लालच में वह गलत दिशा की तरफ भटक गया था जिससे कि उसकी असमय मृत्यु भी हो सकती थी।

दोस्तों हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपनी छोटी-मोटी तकलीफ के ईलाज के लिए बिना किसी डाॅक्टरी सलाह के दवा लेनी शुरू करते हैं और फिर धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ाने लगते हैं। यह दवाएं दरअसल नशीली भी होती हैं और अत्यधिक मात्रा में सेवन से भंयकर दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। खतरा इतना अधिक होता है कि व्यक्ति की जान तक जा सकती है।

ऐसे मेडिकल नशों से न केवल व्यक्ति अपितु उसका पूरा परिवार भी प्रभावित होता है। जरूरत है कि हम सचेत रहे कि किसी भी दवा का सेवन बिना डाॅक्टर की सलाह के लम्बे समय तक ना करें और अगर हमारे आस-पास कोई व्यक्ति इस चपेट में है तो उसे तुरंत नशामुक्ति हेतु मनोचिकित्सक के पास ले जाए। 

धन्यवाद।

आपका

डाॅ. अनंत कुमार राठी
सहायक आचार्य,
मानसिक रोग विभाग,
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर

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