कहानी - राकेश के कदम लड़खड़ा गए


    राकेश 18 साल का कक्षा 12 का विज्ञान का छात्र है। उसके परिवार में उसकी माॅं तथा एक छोटी बहन है। उसके पिता दिल्ली में नौकरी करते हैं। राकेश की ईच्छा डाॅक्टर बनने की है अतः उसके पिता ने उसका एडमिशन कोटा के संस्थान में 6 महीने पहले करवा दिया था। 

उसका मन कोटा में कुछ खास नहीं लग रहा था। वह अक्सर अपनी कोचिंग क्लास जाना छोड़ देता था। काफी बार ऐसा होने पर उसकी अनुपस्थिति का मैसेज उसके पिता के मोबाईल में आने लगा। लगातार कई दिनों तक अनुपस्थित रहने से उसके पिता को चिंता होने लगी। फोन पर राकेश ने उन्हें बताया कि उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए वह कोचिंग क्लास नहीं जा पा रहा। राकेश के पिता को न जाने क्या संदेह हुआ कि वो उसे बिना बताए दिल्ली से कोटा चल दिए। 

यहाँ आने पर उन्हें राकेश कमरे में नहीं मिला और उसका कमरा बिल्कुल अस्त व्यस्त था। लगभग 2 घंटे बाद वह वापिस अपने दो दोस्तों के साथ कमरे पर लौटा तो उसके पिता ने देखा कि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। पिता के पूछने पर उसने बताया कि वह बहुत कमजोर हो गया है इसलिए ठीक से चल नहीं पा रहा। थोड़ी देर में वह सो गया तो पिता ने उसके कपड़ों और बैग की तलाश ली। उन्हें उसमें कुछ कागज की पुड़िया जिसमें कुछ सफेद पाऊडर था और कुछ इंजेक्शन मिले। उन्हें समझते देर न लगी कि उनका बेटा अब नशे की गिरफ्त में आ गया है। 

कुछ देर बाद राकेश उठा और अपनी बैग संभालने लगा तो उसे वहाँ कुछ नहीं मिला। वह बैचेन हो गया और उसके हाथ-पैर कांपने लगे। उसके चेहरे का रंग लाल हो गया और पसीना छूटने लगा। थोड़ी ही देर में वह नशे के लिए तड़पने लगा। उसके पिता ने उसे टैक्सी में बिठाया और तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले गए। मनोचिकित्सक ने पूर्ण जांच की तो पाया कि राकेश नसों मे स्मैक का इंजेक्शन लगाने का आदी हो चुका है। नशा न मिलने से उसकी आंख व नाक से पानी आने लगा और दस्त भी लगने लगे। उसका पूरा बदन टूट रहा था। उसके पिता को अब समझ आने लगा कि क्यूँ वह कोचिंग क्लास नहीं जाता था, क्यूँ वह कुछ दिनों से फोन पर बात नहीं करता था और क्यूँ वह अत्यधिक पैसों की मांग करता था? थोड़ी ही देर में राकेश के मोबाईल पर एक फोन आया जिसे उसके पिता ने उठाया तो सामने वाली आवाज ने उसे उधार के 5000 रूपये चुकाने की धमकी दी और कहा कि अन्यथा वह उसे माल देना बंद कर देगा। 

राकेश का मनोचिकित्सक ने तुरंत ईलाज शुरू किया तो उसे कुछ आराम आया। बाद में राकेश ने रोते हुए अपने पिता को बताया कि वह स्मैक के नशे के दलदल मे बुरी तरह फँस चुका है जिससे कि निकलना बहुत मुश्किल हो गया है। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने पिता से माफी मांगी। उसके पिता उसका ईलाज करवाकर उसे अपने साथ दिल्ली ले गए जहाँ वह अपनी आगे की पढ़ाई कर सके।
दोस्तों हमारे समाज मे कई ऐसे युवा है जो शौकवश नशे की तरफ बढ़ते हैं परंतु नशा उन्हें अपने चंगुल में ऐसा फसाता है कि निकलना मुश्किल हो जाता है। वो ज्यादातर समय घर से बाहर रहने लगते हैं, बार-बार पैसों की मांग करते हैं, मोबाईल का अत्यधिक इस्तेमाल करने लगते हैं और घरवालों से किनारा करने लगते हैं। अगर अपने आस-पास, रिश्तेदारी में, परिवार में या मित्रता में कभी किसी ऐसे युवा को देखें तो तुरंत मनोचिकित्सक तक पंहुचाने में उसकी मदद करें। ऐसा कर आप न केवल उस व्यक्ति अथवा उसके परिवार की सहायता करेंगे बल्कि इस देश को एक बेहतर देश बनाए रखने में भी योगदान दे सकेंगे।


सधन्यवाद
आपका 
डाॅ. अनन्त कुमार राठी
सहायक आचार्य,
मानसिक रोग विभाग,
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर

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