कहानी - बच्चों का अलग सा व्यहवार ऑटिज्म तो नहीं?



सूरज आठ वर्ष का दूसरी कक्षा का विद्यार्थी था। पढ़ने में वह औसत से थोड़ा कम ही था परन्तु उसका पसंदीदा विषय चित्रकारी था। उसके पिता एक दुकानदार थे और माता गृहिणी। उसके एक 6 साल की छोटी बहन प्रमिला भी थी, जो कि उसी की स्कूल में पढ़ती थी। वह एक ऐसे मोहल्ले में रहता था जिसमें खूब बच्चे थे और वे सब हर शाम मिल कर खेलते थे। किन्तु सूरज दूसरे बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं करता था। वह अकेला बैठा रहता था या अपने खिलौनों से खेलता रहता था।

सूरज को गाड़ियों का बहुत शौक था और उसके पास 20 तरह की अलग-अलग गाड़ियों वाले खिलौने थे जिन्हें वह लाईन से लगाता रहता था। पहले तो उसके माता-पिता को लगा कि सूरज का व्यवहार ही कुछ ऐसा है परंतु जब उसकी स्कूल से भी शिकायत आने लगी तो उन्हें चिंता होने लगी।

मनाचिकित्सक को दिखाने पर सूरज को ऑटिज्म नामक मनोरोग होना बताया। सूरज की व्यवहार चिकित्सा और स्पेशल शिक्षा पद्धति चिकित्सा शुरू की गई। धीरे-धीरे सूरज के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा और वह सभी के साथ घुल मिलकर रहने लगा।

दोस्तों ऑटिज्म नामक मनोरोग बच्चों में काफी आम समस्या है जिससे कि समाज में बच्चे को शंकालू समझ कर छोड़ दिया जाता है और धीरे-धीरे यह रोग बच्चे की पढा़ई पर असर डालने लगता है। जरूरत है तो बस समय पर इस रोग के लक्षणों की पहचान करके मनोचिकित्सक से सलाह लेने की।

धन्यवाद
आपका
डॉ. अनंत कुमार राठी
एम. डी. (मनोचिकित्सक)
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर

Comments