आइये जानें ओसीडी (OCD) के बारे में


ओ.सी.डी. (OCD)

रमेश 26 साल का एक मेकेनिकल इंजीनियर है, जो किसी ऑटोमोबाइल कम्पनी में कार्यरत है। उसके परिवार में उसके माता-पिता, पत्नी तथा एक 1 साल का पुत्र है। पिछले साल तक रमेश बहुत अच्छे से अपने हर काम को कर पाता था, किन्तु 1 साल पहले उसे दिमाग में यह विचार बार-बार आने लगा कि शायद उसके हाथ गंदे हो गए है। वह अपने हाथों की तरफ देखता जहाँ उसे कोई गंदगी नजर नहीं आती थी, वह मानता भी था कि उसका यह विचार व्यर्थ ही है, किन्तु फिर भी जब तक वह उठकर रगड़-रगड़ कर 4 बार साबुन से हाथ न धो लेवे तब तक उसके मन से बैचेनी खत्म नहीं होती थी। वह बहुत कोशिश करता कि वह उठकर हाथ ना धोवे, पर ऐसा करने से उसे बहुत ज्यादा घबराहट होती और अंत में थक हार कर उसे हाथ धोने ही पड़ते थे।

कम्पनी में उसके सभी सहकर्मी उसके इस व्यवहार से काफी परेशान रहने लग गए थे। रमेश की हाथ धोने की प्रवृति धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही थी। कुछ ही समय बाद रमेश को नहाने में भी एक घंटा लगने लगा। वह नहाने से पहले न सिर्फ पूरे बाथरूम को सर्फ से साफ करता बल्कि नल, बाल्टी तथा मग को भी साबुन से 3 बार साफ करता था। उसके बाद ही उसके मन में यह निश्चिंतता होती की अब बाथरूम साफ है और वह नहा सकता है। साथ ही वह एक बार नहाने के बाद उस साबुन को भी कभी कभार फेंक देता क्यूंकि उसे लगता कि यह साबुन भी अब गंदा हो गया है। घर में भी वह साफ-सफाई का अत्यधिक ध्यान रखने लग गया था। थोड़ा सा समय मिलते ही वह घर साफ करने लग जाता था और किसी को घर में किसी भी प्रकार की गंदगी लाने नहीं देता था। उसके इस प्रकार के व्यवहार से उसका पूरा परिवार परेशान रहने लगा।

धीरे-धीरे रमेश ने घर में ताले, बिजली के स्विच और गैस चूल्हे का बटन भी बार-बार चेक करना शुरू कर दिया। वह बार- बार उठ कर कभी गैराज का ताला तो कभी अलमारी का ताला चैक करता। एक बार चैक करने पर उसके मन को संतुष्टि नहीं होती थी और वह फिर से सभी ताले, गैस चूल्हा, लाईट के स्विच चैक करता। वह स्वयं भी अपने इस व्यवहार से परेशान रहने लगा परंतु वह स्वयं मजबूर था क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसे बहुत ज्यादा घबराहट होती। 6 महीने पहले रमेश ने घर से ऑफिस जाते समय सड़क पर खम्भे गिनना शुरू कर दिया और पैदल चलने पर अपने कदम गिनने लगा। उसका यह मानना था कि अगर उसके कदम ऑफिस के गेट से उसकी मेज तक पंहुचने में सम संख्या में होंगे तो ही ठीक होगा अन्यथा कुछ बुरा हो जाएगा। चलते - फिरते उसका ध्यान अपने कदमो की संख्या और बची हुई दूरी, टाइलों की संख्या ईत्यादि गिनने में ही लगा रहता था। इस कारण वह जो काम करने जा रहा है वह काम तो भूल जाता और इसी उधेड़बुन में उसका सारा समय बीत जाता।

इस कारण ऑफिस में उसकी कार्यक्षमता लगातार घटती जा रही थी। 3 महीने पहले उसके मन से हाथ के गंदे होने का विचार तो कम हो गया किन्तु एक नयी परेशानी ने मुॅंह खोल लिया। उसे अपने परिवार के सदस्यों और यहां तक कि भगवान के लिए भी बुरे विचार मन में आने लगे। वह अपने परिवार और भगवान के लिए सपने में भी ऐसा नहीं सोच सकता था किंतु यह विचार है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। इस प्रकार के बुरे विचारों से उसे आत्मग्लानि की अनुभूति होती और अपने इस पाप को मिटाने के लिए 3 बार हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ता। पिछले 3 महीने से रमेश का अपने विचारों पर कोई नियंत्रण नहीं रहा तथा ऑफिस में उसके बाॅस ने भी उसे कार्य से हटा दिया। नौकरी छूट जाने से रमेश धीरे-धीरे बहुत उदास रहने लगा। उसकी पत्नी ने उसकी इस परेशानी के बारे में इन्टरनेट पर देखा तो उसे पता चला कि रमेश का यह व्यवहार कोई जानबूझ कर किया हुआ न होकर एक मानसिक बीमारी है।

वह अपने घर के पास ही रहने वाले मनोरोग चिकित्सक के पास रमेश को लेकर गयी तो मनोचिकित्सक ने रमेश को ओ.सी.डी. नामक रोग से पीडित होना बताया। डाॅक्टर ने उसे कुछ दिनो के लिए दवाईयां दी तथा कुछ व्यहवार चिकित्सा पद्धतियों के बारे में बताया। एक महीने में ही रमेश के विचारों की पुनरावृति काफी कम हो गयी और उसने नौकरी वापिस शुरू कर दी।

ओ.सी.डी. अर्थात ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसआर्डर एक प्रकार का एंक्जाईटी डिसआर्डर है जो कि आमतौर पर युवावस्था में शुरू होता है तथा महिलाओं और पुरूषों दोनों में समान रूप से पाया जाता है। इस रोग के प्रमुख लक्षणों में इस प्रकार के विचार बार-बार ना चाहते हुए भी दिमाग में आते हैं, जिन्हें कि आब्शेसन कहते है और रोगी को उन विचारों से उत्पन्न घबराहट को रोकने के लिए कुछ कार्य करने पड़ते हैं जिन्हें कम्पलशन कहते हैं।

ओब्सेसन और कम्पलशन के प्रमुख उदाहरणः-
ओब्सेसन - कम्पलशन
गंदगी - अत्यधिक सफाई करना
संदेह करना/ अत्यधिक जांच - ताले, स्विच, गैस चूल्हा इत्यादि
कुछ अप्रिय होने का डर - सम विषम की गिनती, भगवान का नाम लेना
अव्यवस्थित वस्तुएं - चीजों को अत्यधिक व्यवस्थित करना
भगवान/परिवारजनों के लिए बुरे विचार - बार-बार मंदिर जाना, भगवान का जाप करना।

ओ.सी.डी. एक ठीक होने योग्य मानसिक बीमारी हैं, हमें आवश्यकता है तो बस इसे सही समय पर पहचान कर मनोचिकित्सक से ईलाज लेने की।

धन्यवाद

आपका
डाॅ. अनंत कुमार राठी
सहायक आचार्य,
मानसिक रोग विभाग,
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर

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