एक रोचक जानकारी बायपोलर डिसऑर्डर - मेनिया के बारे में



बायपोलर डिसआर्डर - मेनिया

सुरेश 24 वर्ष का एक नौजवान लड़का था जो कि सैकंड ग्रेड अध्यापक के इम्तिहान की तैयारी कर रहा था। परीक्षा में 15 ही दिन शेष रह गए थे इसलिए सुरेश ने पढ़ाई में दिन- रात एक कर दिया था। रात को भी सुरेश सिर्फ 2 घंटे सोता और फिर उठकर पढने बैठ जाता था। पिछले 10 दिनों से उसका यही टाईम टेबल था।

किन्तु पिछले 4 दिन से उसके साथ रह कर पढ़ने वाले उसके दोस्त राजू ने गौर किया कि सुरेश कुछ ज्यादा ही बोलने लगा था। उसके दिमाग में विचारों की लम्बी-लम्बी श्रृखलांए बड़ी तेजी से आ रही थी। वह सारा दिन इधर-उधर घूमता रहता, कभी पढ़ाई करने बैठता तो 10 मिनट में ही वापिस उठ जाता था। वह तेज आवाज में गाने सुनने लगा और डान्स भी करने लगा। साथ ही उसने भगवान की अत्यधिक भक्ति करनी शुरू कर दी। रोजाना नया अगरबती का पैकेट लाता और सारी जला देता। बहुत जोर-जोर से भजन गाता और कहता बालाजी महाराज का मैं सबसे बड़ा भक्त हूँ। मुझ पर उनकी विशेष कृपा हैं। मुझे उन्होने अपना दूत बनाकर धरती पर भेजा है और कहा कि  धरती से सारे पाप नष्ट कर दो। बालाजी महाराज की दी हुई शक्तियों से में बहुत बड़े - बड़े काम अकेला कर सकता हूॅं जिसकी कि दुनिया कल्पना भी नहीं कर सकती। यह प्रतियोगी परीक्षा तो मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है, मैं तो सीधा प्रोफेसर बन जाऊंगा।

इसी दरमियान सुरेश बहुत ज्यादा पैसा भी खर्च करने लगा। बाजार से अनावश्यक ही रंग बिरंगी चीजें खरीद लाता था। कोई भिखारी अगर पैसे मांगता तो उसने 100 रूपये दे देता। बोलते-बोलते वह थकता ही नहीं था। राजू ने उसे कई बार एक जगह चुपचाप बैठ कर पढ़ने की सलाह दी फिर भी सुरेश उसकी एक ना सुनता और तेज-तेज बोलकर उसे भी परेशान करता। प्रधानमंत्री तक को सुरेश अपना दोस्त बताता और कहता कि उसकी बात रोज उनसे होती हैं।

अत्यधिक परेशान करने पर राजू ने सुरेश के पिताजी को फोन करके सारी बात बतायी। अगले ही दिन सुरेश के पिताजी उससे मिलने आए और देखते ही सारा माजरा समझ गए क्योंकि सुरेश के लक्षणों जैसी ही बिमारी सुरेश के मामा को भी थी। वो सुरेश को तुरंत ही मनोचिकित्सक के पास ले गए। मनोचिकित्सक ने सुरेश का पूरा परीक्षण किया और उसके पिता को बताया कि सुरेश को मेनिक एपिसोड नामक मानसिक रोग हो गया है, जिसके कारण ही उसे नींद कम आ रही हैं और वह ज्यादा घूम फिर रहा है तथा वह अपने आप को बड़ा इन्सान समझ रहा है।

यह रोग आनुवांशिक भी होता है किन्तु दवा लेने पर इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। तुरंत ही सुरेश को अस्पताल में भर्ती कर ईलाज शुरू किया गया और सुरेश के लक्षणों में सुधार आने लगा। सुरेश को 10 दिन अस्पताल में भर्ती रखने के बाद छुट्टी दे दी गई और उसे एक साल तक नियमित रूप से मनोचिकित्सक से जांच करवाकर ईलाज लेने की सलाह दी गई ताकि इस रोग की पुनरावृति होने की संभावनाओं को कम किया जा सके।

समाज में सुरेश जैसे कई व्यक्ति है जो सामान्य से अधिक घूमते-फिरते और बोलते हैं तथा स्वयं को भगवान का भक्त मानते हैं। दोस्तो ये कोई भूत-प्रेत अथवा ऊपरी साया न होकर एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसका उपचार संभव हैं। जरूरत है तो बस समय पर पहचान कर समुचित ईलाज लेने की।

धन्यवाद
आपका अपना
डाॅ. अनंत कुमार राठी
सहायक आचार्य,
मानसिक रोग विभाग,
पी. बी. एम. अस्पताल, बीकानेर।
मोबाईल 98280 45560

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