सोमेटाइजेशन डिसऑर्डर - एक मानसिक रोग (लक्षण शारीरिक - मर्ज मानसिक)





लक्षण शारीरिक - मर्ज मानसिक

राधा एक 30  साल की गृहणी है जिसकी शादी हुए 10 साल हो गए हैं। राधा का ससुराल बहुत अच्छा है, पति की सरकारी नौकरी भी है किंतु पिछले चार.पांच सालों से राधा की तबीयत ठीक नहीं रहती है। लगभग 5 साल पहले राधा को सिर दर्द तथा गर्दन के पिछले हिस्से में दर्द रहना शुरू हो गया थ। कुछ समय तो ससुराल वालों ने घरेलू उपचार किया पर आराम ना आने की वजह से पास ही किसी फिजिशियन को दिखाया।  फिजीशियन ने सिर की एम आर आई करवाने तथा कुछ खून की जांच करवाने को कहा। जांच की रिपोर्ट सामान्य थी और फिजिशियन ने दवा लिख दी । राधा ने दवा पूरी ली पर उसे पूरा फायदा नहीं हुआ, अतः उसने दवा बंद कर दी ।

1 महीने बाद ही राधा के पेट में गैस बनी रहने लग गई जिससे कि उसका जी मचलाता था, उल्टी होने का एहसास रहता था और कभी कभी तेज पेट दर्द भी रहता था। उसे भूख नहीं लगने लगी तो पेट के डॉक्टर को दिखाने पर पेट की सोनोग्राफी, लीवर की जांच और एंडोस्कोपी करवाई गई। परंतु नतीजा फिर वही था कि जाचों में कुछ भी खास ऐसा नहीं आ रहा जिससे कि इतना तेज पेट दर्द हो सके। फिर से राधा को कुछ दिन भूखे पेट के कैप्सूल और कुछ पीने की दवा दी गई किंतु कोई खास आराम नहीं रहा।  लगभग 3 महीने बाद ही राधा को एक नई दिक्कत होने लगी कि उसके शरीर में दर्द अलग.अलग जगह होने लगा, जैसे कि कुछ दिन घुटनों में दर्द रहता तो कुछ दिन कमर में, कुछ दिन कंधों में दर्द रहता तो कुछ दिन सीने में । गठिया रोग की आशंका से किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने के लिए उसके पति ने अपॉइंटमेंट लिया और संपूर्ण जांच और एक्स-रे करवाएं किंतु आश्चर्यजनक रूप से सभी रिपोर्ट फिर से नॉर्मल थी।

राधा की परेशानी से उसका पूरा परिवार परेशान रहने लगा। राधा घर में अपना काम सही से नहीं कर पाती थी तथा उसने सामाजिक कार्यक्रमों में भी आना जाना कम कर दिया। बार-बार हो रही नई-नई परेशानियों को पति को बताने में उसे शर्म आने लगी तथा उसके इलाज पर लग रहे हजारों रुपए खर्च से भी परेशान रहने लगी। इस प्रकार राधा को पिछले चार-पांच सालों में कई तरह के शारीरिक लक्षण प्रकट हुए, हर तरह की जांच हुई, कई स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को दिखाया किंतु नतीजा कुछ नहीं निकला।

एक दिन राधा के पति के ऑफिस में ही काम करने वाले उसके मित्र ने राधा को किसी मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दी। एक बार तो उसे यह सुनकर बहुत बुरा लगा और उसने यह भी सोचा कि राधा के सारे लक्षण शारीरिक है फिर उसे मानसिक रोग कैसे हो सकता है ? किंतु थक हारकर आखिर राधा को एक मनोरोग चिकित्सक के पास ले गया। मनोरोग चिकित्सक ने राधा की बीमारी और उसके सामाजिक परिवेश की पूरी जानकारी ली । मनोरोग चिकित्सक को लगा कि हो ना हो राधा की बीमारी शारीरिक न हो कर मानसिक है। शादी के 10 वर्ष बाद भी राधा की कोई संतान नहीं थी जिसकी राधा मन ही मन टेंशन करती थी और किसी से भी इस बात का जिक्र नहीं करती थी। मनोरोग चिकित्सक ने उसके मन की बात को समझा उसे तनाव मुक्त रहने के लिए कुछ दवा दी तथा योग और प्राणायाम करने की सलाह दी। कुछ ही दिनों में राधा की बीमारी ठीक होने लगी और राधा अब खुश रहने लगी। उसने घर का सारा काम काज फिर से संभाल लिया।

समाज में राधा अकेली ही ऐसी मरीज नहीं जिसने की शारीरिक लक्षणों के तौर पर प्रकट होने वाले इस मानसिक रोग सोमेटाइजेशन डिसऑर्डर को पिछले 5 वर्षों तक सहा अपितु लाखों की तादाद में इस रोग से पीड़ित ऐसे व्यक्ति हैं जो किसी न किसी तनाव, जिसे कि वे स्वयं नहीं पहचान पाते, की किस वजह से कई वर्षों से अलग-अलग जांचे करवा रहे हैं, अलग-अलग स्पेशलिस्ट को दिखा रहे हैं, परंतु पूरा आराम नहीं आ रहा ।

सोमेटाइजेशन की डिसऑर्डर की शुरुआत आमतौर पर 25 से 35 वर्ष की उम्र में होती है तथा यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में 5 से 10 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। आमतौर पर इस रोग में आने वाले शारीरिक लक्षण बदल बदल कर आते रहते हैं और जाचों में कुछ भी ऐसा नहीं आता जो किसी एक खास शारीरिक बीमारी के बारे में इंगित करते हैं। इसलिए इस बीमारी में बहुत से लक्षण होते हैं तथा वह समय के साथ बदलते रहते हैं, जैसे कभी सिर दर्द, पेट दर्द, कमर दर्द, सिर में गैस चढ़ जाना, पैरों में झनझनाहट रहना, शरीर सुन्न हो जाना, पेट में गोले चलना, दिल की धड़कन बढ़ना, सांस लेने में तकलीफ होना, जी मिचलाना, घबराहट रहना इत्यादि।

मरीज जागरूकता की कमी की वजह से अलग अलग स्पेशलिस्ट के पास जाता रहता है, जांचें बार-बार करवाता रहता है, परंतु किसी भी शारीरिक बीमारी का पता नहीं चलता। इन लक्षणों को ठीक करने की दवा देने पर भी कोई विशेष आराम नहीं आता, क्योंकि वास्तव में यह बीमारी शारीरिक ना होकर मानसिक है। अर्थात मन की परेशानी शारीरिक लक्षणों के तौर पर इस बीमारी में प्रकट होती है। आज के युग में जरूरत है कि हम सभी इस बीमारी को समझें अपने मन के भीतर उपस्थित किसी तनाव को पहचाने तथा सही समय पर मनोरोग चिकित्सक को दिखा कर अनावश्यक रूप से जाचों पर किए जाने वाले खर्च तथा अनावश्यक दवाइयों के सेवन से बच सकें।

धन्यवाद।

आपका
डॉ. अनंत कुमार राठी
सहायक आचार्य, मनोरोग चिकित्सा विभाग
पी. बी. एम अस्पताल, बीकानेर।

Comments

  1. Beautiful illustration of a very common but less commonly identified mental illness. Easy language with positive outcome makes it worth reading

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